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    Home»राजनीती»कर्नाटक-तमिलनाडु में फिर ठनी, मुख्‍यमंत्री स्टालिन बोले- सीडब्‍ल्‍यूआरसी पड़ोसी राज्य को पानी छोड़ने का दे आदेश
    राजनीती

    कर्नाटक-तमिलनाडु में फिर ठनी, मुख्‍यमंत्री स्टालिन बोले- सीडब्‍ल्‍यूआरसी पड़ोसी राज्य को पानी छोड़ने का दे आदेश

    By July 16, 2024No Comments4 Mins Read
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    कावेरी जल विवाद फिर से गरमा गया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने अंतर-राज्यीय नदी विवाद को लेकर आज सर्वदलीय बैठक बुलाई। अब इस मामले में कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि पड़ोसी राज्य को अपनी समस्याओं पर बैठक करने का पूरा अधिकार है। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि स्टालिन उन्हें पानी के भंडारण करने की अनुमति दें, यही उनके हित में होगा। वहीं, बैठक के बाद सीएम एमके स्टालिन ने कहा, 'सर्वदलीय बैठक में तमिलनाडु को कावेरी का पानी छोड़ने से इनकार करने के लिए कर्नाटक सरकार की कड़ी निंदा की गई। हम सीडब्ल्यूआरसी से आग्रह करते हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट और सीडब्ल्यूएमए के आदेश के अनुसार कर्नाटक सरकार को तमिलनाडु के लिए कावेरी का पानी छोड़ने का आदेश दे।' डीके शिवकुमार ने कहा, 'तमिलनाडु को हमारी तरह बैठक करने का पूरा अधिकार है। हमें उनकी बैठक पर कोई आपत्ति नहीं है। यह उनका कर्तव्य है। मैं उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता। मगर साथ ही, कल से मुझे अच्छा अंतर्वाह देखने को मिल रहा है। कावेरी क्षेत्र में 50,000 क्यूसेक से अधिक पानी है। जितना भी पानी होगा, हम हरंगी से बाहर भेजने की अनुमति दे रहे हैं। मेरे विचार से 20,000 क्यूसेक से अधिक पानी हरंगी और अन्य स्थानों से भेजा जा रहा था।' उन्होंने कहा, 'अगर भगवान ने चाह तो हमारी समस्याएं हल हो जाएंगी। मैं तमिलनाडु से एक बात कहना चाहूंगा। आपके और हमारे हित के लिए, हमारे हित से अधिक आपका हित है, आप हमें अनुमति दीजिए। हम जो भी भंडारण करेंगे, हम आपको उतना ही पानी देंगे। हम उस पानी को वापस नहीं ले सकते। कर्नाटक के लोगों की ओर से यह मेरी सरल और विनम्र अपील है। हम जिस भी तरह से सहयोग कर सकते हैं, करेंगे।' वहीं, कावेरी विवाद पर कांग्रेस विधायक रिजवान अरशद ने कहा, 'हम उम्मीद करते हैं कि तमिलनाडु सरकार समझेगी कि हमने कुछ मात्रा में पानी छोड़ने का फैसला किया है। मुझे विश्वास है कि तमिलनाडु में सद्बुद्धि आएगी और टकराव के बजाय मामले को शांतिपूर्वक ढंग से सुलझाया जाएगा। मुझे उम्मीद है कि मोदी और एचडी कुमारस्वामी आमने-सामने बैठेंगे, दोनों पार्टियों को बुलाएंगे और इसका समाधान करेंगे। हम (डीएमके-कांग्रेस) सहयोगी हो सकते हैं, लेकिन हम अपने राज्यों में शासन चला रहे हैं और अपने-अपने राज्यों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम चाहते हैं कि मोदी अपनी आंखें खोलें और कावेरी मुद्दे पर कुछ करें।'  स्टालिन ने कहा था कि 15 जुलाई 2024 तक कर्नाटक के चार मुख्य बांधों में कुल भंडारण 75.586 टीएमसी फीट है, जबकि तमिलनाडु के मेट्टूर जलाशय में जल का स्तर मात्र 13.808 टीएमसी फीट है। मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार इस बार पर्याप्त बारिश की गुंजाइश है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा था कि 'कर्नाटक द्वारा कावेरी जल नियमन समिति के निर्देशों के अनुसार पानी छोड़ने से इनकार करना, तमिलनाडु के किसानों के साथ धोखा है और राज्य कभी भी इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।' रविवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा था कि राज्य सरकार तमिलनाडु के लिए कावेरी नदी से हर रोज आठ हजार क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए तैयार है। बता दें कि कावेरी जल नियमन समिति ने कर्नाटक सरकार को इस महीने के अंत तक तमिलनाडु के लिए हर रोज एक टीएमसी फीट पानी छोड़ने का निर्देश दिया था। तमिलनाडु सीएम ने कहा कि उन्होंने राज्य विधानसभा में सभी पार्टियों के विधायक दल के नेताओं की बैठक बुलाई है। उस बैठक में आगे के कदम पर चर्चा की जाएगी। बैठक 16 जुलाई को सुबह 11 बजे राज्य सचिवालय में होगी। 

    क्या है कावेरी जल विवाद 

    कावेरी नदी के जल को लेकर विवाद करीब 140 साल से भी ज्यादा पुराना है। साल 1881 में कर्नाटक ने नदी पर बांध बनाने का फैसला किया, लेकिन तमिलनाडु ने इसका विरोध किया। कई साल ये विवाद चलने के बाद ब्रिटिश सरकार ने इसमें हस्तक्षेप किया और दोनों राज्यों के बीच एक समझौता कराया। इसके समझौते के तहत नदी के जल का 556 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी तमिलनाडु को और 177 हजार मिलियन क्यूबिक पानी कर्नाटक को मिलना तय हुआ। कावेरी नदी कर्नाटक के कोडागू जिले से निकलती है और तमिलनाडु से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। नदी का कुछ हिस्सा केरल और पुडुचेरी में भी है। साल 1972 में एक कमेटी गठित की गई। इस कमेटी ने 1976 में चारों राज्यों के बीच नदी के जल को लेकर एक समझौता कराया, लेकिन अभी भी नदी के जल को लेकर विवाद है। दरअसल कर्नाटक ब्रिटिश काल में हुए समझौते को तर्कसंगत नहीं मानता और तमिलनाडु उस समझौते को सही मानता है। 

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